Swami Vivekananda Death Anniversary: दुनिया छोड़ने से पहले स्वामी विवेकानंद ने मानवता (Humanity) को ही धर्म (Religion) के स्तर पर पहुंचा दिया था.
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Swami Vivekananda जाने से पहले कितना कुछ दे गए स्वामी जी

विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने देश के लोगों में हिंदू धर्म के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया. (फाइल फोटो)
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) को एक सन्यासी, गुरू, आध्यात्मिक नेता (Spiritual Leader), धर्मगुरू, जैसे कई नामों से जाना जाता है. भारत (India) देश के वेदांत ज्ञान को दुनिया के सामने लाने का कार्य जिस सुंदर तरीके से स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में हुई धर्म संसद में किया और भला कौन परिचित नहीं है. 4 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि है. इसी दिन साल 1902 को उन्होंने 39 साल की कम उम्र में दुनिया छोड़ दी थी, लेकिन उससे पहले वे पूरे संसार के लिए ऐसे प्रेरणास्रोत बन गए जो बेमिसाल है.
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जवाबों की तलाश
अपने सवालों के जवाबों के लिए नरेंद्रनाथ बहुत भटके. विज्ञान की किताबों से लेकर वे कुछ बाबाओं भी संपर्क में आए लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं मिली. एक बार कॉलेज में जब उन्होंने ऐसे ही सवाल अपने प्रोफेसर से पूछे तो उनके प्रोफेसर ने जवाब दिया कि इन सवालों के जवाब तो उनके पास नहीं हैं लेकिन वे दक्षिणेश्वर में रहने वाले एक व्यक्ति को जानते हैं जिनके पास इन सवालों का जवाब हो सकता है.
बचपन से ही जिज्ञासा
बचपन से तीक्ष्ण बुद्धि, निडरता और शानदार तर्कशक्ति के धनी नरेंद्रनाथ को भगवान और उनके अस्तित्व से संबंधित प्रश्न बहुत परेशान करते थे जो कॉलेज में आते आते तक उनके लिए एक प्रमुख खोज पड़ताल का विषय बन गए थे. वे सभी से एक ही प्रश्न पूछा करते थे. क्या भगवान है, अगर है तो मैं उससे कैसे मिल सकता हूं. उन्होंने यहां तक कह रखा था कि अगर कोई उनके इन सवालों के जवाबों से उन्हें संतुष्ट कर देगा तो वे उसे अपना गुरू मान लेंगे.
जब मिले जवाब
फिर क्या था नरेंद्र दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में पहुंच गए जहां उनकी अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात हुई जिन्होंने उनके सभी सवालों के जवाब दिए लेकिन यह भी कहा कि ईश्वर से मिलने के लिए उन्हें इसके लिए तैयार होना होगा और वे उनकी ईश्वर से अच्छे से मुलाकत भी करवा देंगे. इसके बाद दोनों के बीच गुरू शिष्य का अटूट रिश्ता बन गया.

हर कोई मुरीद
स्वामी जी की ख्याति जल्दी ही पूरे देश में फैल गई और वे जल्दी ही देशभर के प्रेरणास्रोत बन गए. जो भी उनसे मिला उनका मुरीद हो गया. उन्होंने हमेशा मानव सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म कहा और उसी का हमेशा देश भर में प्रचार करते पाए गए. उन्होंने कभी किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया और लोगों को भी हर धर्म की अच्छी बातें ही ग्रहण करने की प्रेरणा दी. विरोध शब्द जैसे उनके शब्दकोश में नहीं था.
बचपन से तीक्ष्ण बुद्धि, निडरता और शानदार तर्कशक्ति के धनी नरेंद्रनाथ को भगवान और उनके अस्तित्व से संबंधित प्रश्न बहुत परेशान करते थे जो कॉलेज में आते आते तक उनके लिए एक प्रमुख खोज पड़ताल का विषय बन गए थे. वे सभी से एक ही प्रश्न पूछा करते थे. क्या भगवान है, अगर है तो मैं उससे कैसे मिल सकता हूं. उन्होंने यहां तक कह रखा था कि अगर कोई उनके इन सवालों के जवाबों से उन्हें संतुष्ट कर देगा तो वे उसे अपना गुरू मान लेंगे.
जब मिले जवाब
फिर क्या था नरेंद्र दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में पहुंच गए जहां उनकी अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात हुई जिन्होंने उनके सभी सवालों के जवाब दिए लेकिन यह भी कहा कि ईश्वर से मिलने के लिए उन्हें इसके लिए तैयार होना होगा और वे उनकी ईश्वर से अच्छे से मुलाकत भी करवा देंगे. इसके बाद दोनों के बीच गुरू शिष्य का अटूट रिश्ता बन गया.

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने मानव में आपस में दया और करुणा भाव के महत्व पर जोर दिया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
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स्वामी जी की ख्याति जल्दी ही पूरे देश में फैल गई और वे जल्दी ही देशभर के प्रेरणास्रोत बन गए. जो भी उनसे मिला उनका मुरीद हो गया. उन्होंने हमेशा मानव सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म कहा और उसी का हमेशा देश भर में प्रचार करते पाए गए. उन्होंने कभी किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया और लोगों को भी हर धर्म की अच्छी बातें ही ग्रहण करने की प्रेरणा दी. विरोध शब्द जैसे उनके शब्दकोश में नहीं था.
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दुनिया को भी प्रेरित किया
उन्होंने जाति, धर्म, आदि के आधार पर भेदभाव को मानवता पर एक बहुत बड़ा धब्बा बताया और मानव मात्र की सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म बताया है. 11 सितंबर 1893 को शिकागो में हुई धर्म संसद में उन्होंने जिस तरह से हिंदुओं की तस्वीर पेश की वह आज भी भारतवासियों को गौरांवित महसूस करा देती है.

1893 में शिकागो में हुई धर्म संसद में विवेकानंद (Swami Vivekananda) के भाषण ने उन्हें पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया था. (फाइल फोटो)
गुरू की शिक्षा का प्रचार
रामकृष्ण के शिष्य रहकर नरेंद्रनाथ ने नया नाम स्वामी विवेकानंद धारण किया. उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण की. गुरू रामकृष्ण के संसार छोड़ने के बाद विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ के साथ रामकृष्ण मिशन की भी स्थापना की और अपने गुरू की शिक्षाओं का प्रचार करने की जिम्मेदारी उठाई.
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उसके बाद भारत मेंअमेरिका से लौटने के बाद तो उन्होंने भारत में खासतौर पर दक्षिण भारत में कई जगहों पर व्याख्यान दिए और लोगों को अपनी विचारों से अवगत कराते हुए उन्हें जातिवाद को खत्म करने, मानवता के उत्थान, उद्योग और विज्ञान को बढ़ावा देने की पैरवी की. पंजाब में जाकर उन्होंने आर्यसमाज और सनातन धर्म के बीच की दूरियां हटाने का कम भी किया.
इस समय तक विवेकानंद का स्वास्थ्य गिरने लगा था. 1899 में वे एक बार फिर इंग्लैंड और अमेरिका गए वेदांत समितियां स्थापित की. इसके बाद वे यूरोप- मिस्र से होते हुए भारत आए और बेलूर मठ में अंतिम दिन बिताए. 4 जुलाई 1902 की सुबह उन्होंने ध्यान करते समय अपना शरीर त्याग दिया.
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